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________________ १६ श्री शांतिनाथ-चरित १९५ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ तब मेघरथने पूछा:-"इनकी हारजीत कैसे मालूम होगी?" त्रिकालज्ञ राजाने जवाब दियाः- "इनकी हारजीतका निर्णय नहीं हो सकेगा। इसका कारण तुम इनके पूर्वभवका हाल सुनकर भली प्रकारसे कर सकोगे । सुनो, "रत्नपुर नगरमें धनवसु और दत्त नामके दो मित्र रहते थे। वे गरीब थे, इसलिए धन कमानेकी आशासे बैलोंपर माल लादकर दोनों चले । रस्तेमें बैलोंको अनेक तरहकी तकलीफें देते और लोगोंको ठगते वे एक शहरमें पहुँचे । वहाँ कुछ पैसा कमाया । महान लोभी वे दोनों किसी कारणसे लड़ पड़े और एक दूसरेके महान शत्रु हो गये । आखिर आर्तध्यानमें वैरभावसे मरकर वे हाथी हुए । फिर भैंसे हुए, मेंढे हुए और तब ये मुर्गे हुए हैं।" ___ अपने पूर्व जन्मका हाल सुनकर मुगाको जातिस्मरण ज्ञान हुआ । उन्होंने वैर त्यागकर अनशन व्रत लिया और मरकर अच्छी गति पाई। राजा धनरथने पुत्र मेघरथको राज्य देकर दीक्षा ले ली और तपकर मोक्षलक्ष्मी पाई। मेघरथके दो पुत्र हुए । प्रियमित्रासे नंदिषेण और मनोरमासे मेघसेन । दृढरथकी पत्नी सुमतिने भी रथसेन नामक पुत्रको जन्म दिया। एक दिन मेघरथ पोसा लेकर बैठा था उसी समय एक कबतर आकर उसकी मोदमें बैठ गया और 'बचाओ! बचाओ!'का करुण नाद करने लगा। राजाने सस्नेह उसकी पीठपर हाथ फेरा और Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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