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णीय आचार्य श्रीविजयवल्लभ सूरि महाराजकी कृपासे और पूज्य प्रवर मुनिवर्य श्रीमान पुण्यविजयजी महाराजकी सहायतासे उसको सम्पादन करनेका कार्य मैंने अपने सिर लिया है। भावनगरकी श्रीआत्मानंद जैनसभा इसको श्रीजैन आत्मानंद शताब्दि सीरीजमें प्रकाशित करेगी। मुझे आशा है कि थोड़े ही समयमें मैं इसका, दसपासे, प्रथम पर्व विद्वानोंके करकमलोंमें दे सकूँगा। ___ श्रावकवर्गसे मैं आग्रह करूँगा कि, वह वर्माजीके ग्रंथरत्नको शीघ्र खरीद कर शेष महापुरुषोंके चरित्र छपानेमें ग्रंथभंडारके सहायक बनें। __शासनदेव श्रीवर्मानीकी उत्तम लेखनीसे लिखे गये इस ग्रंथ चरित्र रत्नको, हरेक घरमें और हरेक व्यक्तिके हाथमें पहुँचा कर वर्माजीके उत्साहको प्रति दिन बढावे । और दूसरे चरित्र लिखनेकी उन्हें प्रेरणा करे । इसी शुभाषासे विराम लेता हूँ। गोडीजीका उपाश्रय । न्यायांभोनिधि जैनाचार्य श्रीमद्विजयानंद सूरीश्वरजी, पायधुनी, बंबई नं. ३. प्रसिद्ध नाम श्री आत्मारामजी महाराजके पट्टधर वि० सं० १९९१ पूज्यपाद आचार्य श्रीविजयवल्लभ सूरीश्वरजी वीर सं० २४६१ महाराजके प्रशिष्य रत्न पंन्यास श्री उमंगविजयजी आत्म सं० ४० । महाराजके अन्तेवासी, विद्वज्जन कृपाकांक्षीविजयादसमी सोमवार | ता. ७--१०-३५ )
मुनि-चरणविजय
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