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________________ १६ श्री शांतिनाथ-चरित १८३ चक्रवाल नामका एक मंत्र बतलाकर कहा:-" हे स्त्री ! देवगुरुकी आराधनामें लीन होकर तू दो और तीन रात्रिके क्रमसे साढे तीस उपवास करना ।इस तपके प्रभावसे तुझे फिर कभी ऐसा कष्ट सहन नहीं करना पड़ेगा।" ___ श्रीदत्ताने तप आरंभ किया । उसके प्रभावसे पारणेमें ही स्वादिष्ट भोजन खानेको मिला । अब दिन २ उसके घरमें समृद्धि होने लगी। उसके खान, पान, रहन, सहन, सभी बदल गये । एक दिन उसको जीर्ण शीर्ण घरमेंसे स्वर्णादि द्रव्यकी प्राप्ति हुई । इससे उसने चैत्यपूजा और साधु साध्वियोंकी भक्ति करनेके लिए एक विशाल उद्यापन (उजमणा) किया। ___ तपस्याके अंतमें वह किन्हीं साधुको प्रतिलाभित करनेके लिए दर्वाजेपर खड़ी रही । उसे सुव्रतमुनि दिखे । उसने बड़े भक्तिभावके साथ प्रासुक अन्नसे मुनिको प्रतिलाभित किया। फिर उसने धर्मोपदेश सुननेकी इच्छा प्रकट की । मुनिजीने कहा:-" साधु जब भिक्षार्थ जाते हैं तब कहीं धर्मोपदेश देने नहीं बैठते, इसलिए तू व्याख्यान सुनने उपाश्रयमें आना । " साधु चले गये । श्रीदत्ता व्याख्यान सुनने उपाश्रयमें गई और वहाँ उसने सम्यक्त्व सहित श्रावकधर्म स्वीकार किया। __धर्म पालते हुए एक बार श्रीदत्ताको सन्देह हुआ कि मैं धर्म पालती हूँ उसका फल मुझे मिलेगा या नहीं ? भावी प्रबल होता है । एक दिन जब वह सत्ययशा मुनिको वंदना करके घर लौट रही थी। उस समय उसने विमानपर बैठे हुए दो विद्याधरोंको आकाश मार्गसे जाते देखा। उनके रूपको देखकर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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