SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 189
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन-रत्न १५६ mmmmmm साढे सात लाख वर्ष कुमार वयमें, १५ लाख वर्ष राज्य कार्यमें और साढ़े सात लाख वर्ष दीक्षा पालनेमें इस तरह ३० लाख वर्षकी आयु पूर्ण कर प्रभु मोक्षमें गये । उनका शरीर ५० धनुष ऊँचा था। _ विमलनाथजीका निर्वाण हुआ, उसके पीछे नौ सागरोपम बीतने पर अनन्तनाथजी मोक्षमें गये । इनके तीर्थमें चौथा वासुदेव पुरुषोत्तम, चौथा बलदेव सुप्रभ और चौथा प्रतिवासुदेव मधु हुए । १५ श्री धर्मनाथ-चरित कल्पद्रुमसधर्माण-मिष्टप्राप्तौ शरीरिणाम् । चतुर्दा धर्मदेष्टारं, धर्मनाथमुपास्महे ॥ भावार्थ-जो प्राणियोंको इच्छित फलकी प्राप्तिमें कल्पवृक्षके समान हैं और जो दान, शील, तप और भावरूपी चार प्रकारके धर्मका उपदेश करनेवाले हैं उन श्री धर्मनाथप्रभुकी हम उपासना करते हैं। धातकी खण्डके पूर्व विदेहमें, भरतनामके देशमें भदिल नगर था । वहाँका राजा दृढरथ था। उसको संसारसे १ प्रथम भव वैराग्य उत्पन्न हुआ । उसी समय उसने विमल ____वाहन गुरूके पाससे दीक्षा ली । चिर कालतक सकल चारित्र पाला, और बीस स्थानकी आराधनासे तीर्थकर गात्र बाँधा। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy