SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 184
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३ श्री विमलनाथ-चरित १५१ ___ मोक्षकाल निकट जान भगवान चंपा नगरीमें पधारे । वहाँ छ: सौ मुनियोंके साथ अनशन व्रत ग्रहण कर एक मासके अन्तम अषाढ़ सुदि १४ के दिन उत्तरा भाद्रपद नक्ष- त्रमें प्रभु मोक्षको गये । इन्द्रादि देवोंने निर्वाणकल्याणक किया। ___ प्रभु १८ लाख वर्ष कुमार वयमें और ५४ लाख वर्ष दीक्षापर्यायमें इस तरह ७२ लाख वर्षकी आयु समाप्तकर मोक्षमें गये । उनका शरीर ७० धनुष ऊँचा था। श्रेयांसनाथके मोक्ष जानेके ५४ सागरोपम बीतने पर वासुपूज्यजी मोक्षमें पधारे । इनके समयमें द्विपृष्ट वासुदेव, विजय बलभद्र और तारक प्रतिवासुदेव हुए थे। १३ श्री विमलनाथ-चरित विमलस्वामिनो वाचः, कतकक्षोदसोदराः । जयंति त्रिजगञ्चेतो-जलनैर्मल्यहेतवः ॥ भावार्थ-कतक फलके चूण जैसी, तीन लोकके प्राणियोंके हृदयरूपी जलको निमल बनानेवाली श्री विमलनाथ स्वामीकी वाणी जयवंती होव । धातकी खण्डके प्राग विदेहमें भरत नामका देश है। उसमें ___महापुरी नगरी थी । उसका राजा पद्मसेन था। १ प्रथम भव उसको वैराग्य उत्पन्न हुआ। सर्व गुप्तमुनिके पास उसने दीक्षा ली । सम्यक् प्रकारसे चारित्रका पालन किया। और अद्भिक्ति आदि बीस स्थानककी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy