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________________ १२ श्री वासुपूज्य-चरित rare. विश्वोपकारकीभूत-तीर्थकृतकनिर्मितिः। सुरासुरनरैः पूज्यो, वासुपूज्यः पुनातु वः॥ भावार्थ-जिन्होंने जगत्का उपकार करनेवाला तीर्थकर नाम कर्म निर्माण किया है-उपार्जन किया है और जो देवता, असुर और मनुष्य सभीके पूज्य हैं, वे वासुपूज्य स्वामी तुम्हें पवित्र करें। पुष्करवर द्वीपमें मंगलावती नामक देश है । उसकी राजधानी रत्नसंचया नामकी नगरी थी । १ प्रथम.भव उसमें पद्मोत्तर नामका राजा राज्य करता था । उसको संसारसे वैराग्य हुआ और उसने वज्र नामक गुरुके पाससे दीक्षा ले ली। आठ प्रवचन माता (५ सुमति ३ गुप्ति ) को पाल कर और बीस स्थानककी आराधना कर उसने तीर्थकर नाम कर्म बाँधा । - प्राण तज कर पद्मोत्तरका जीव दशवे देव२ द्वितीय भव 'लोकमें उत्पन्न हुआ। जंबूद्वीपके भरतक्षेत्रमें चंपा नगरी थी । उस नगरीके राजा वासुपूज्यके जया नामकी रानी थी । पद्मोत्तर३ तीसरा भव का जीव स्वर्गसे च्यवकर जेठ सुदि ९ के दिन शतभिशाखा नक्षत्रमें जयादेवीके गर्भमें आया । इन्द्रादि देवोंने गर्भकल्याणक किया । नौ माह साढ़े सात दिन Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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