SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 180
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २ दूसरा भव ११ श्री श्रेयांसनाथ - चरित प्राण तज कर नलिनगुल्म शुक्र नामक दशवें देवलोकमें उत्पन्न हुआ । १४७ वहाँसे च्यवकर सिंहपुरी नगरके राजा विष्णुकी रानी के उदरसे जेठ बदि ६ के दिन श्रवण नक्षत्रमें ३ तीसरा भव आया । इन्द्रादि देवोंने गर्भकल्याणक मनाया । गर्भकाल पूरा होनेपर विष्णु माता की कुक्षिसे भाद्रपद वदि १२ के दिन श्रवण नक्षत्र में गेंडेके चिन्ह सहित पुत्ररत्नका जन्म हुआ । इन्द्रादि देवोंने जन्मकल्याणक किया । पुत्रका नाम श्रेयांस कुमार रखा गया। क्योंकि उनके जन्मसे राजाके घर सब श्रेय ( कल्याण ) हुआ था । अनुक्रमसे प्रभु युवा हुए । तब पिताने अनेक राजकन्याओं के साथ उनका पाणिग्रहण करा दिया । वे २१ लाख वर्षतक युवराज रहे और ४२ लाख वर्षतक उन्होंने राज्य किया । जब लोकान्तिक देवोंने आकर दीक्षा लेनेकी विनती की, तब प्रभुने वर्षीदान दिया और सहसाम्र वनमें जाकर फाल्गुन वाद १३ के दिन श्रवण नक्षत्रमें छट्ट तपकर दीक्षा ली । इन्द्रादि देवने तपकल्याणक किया । दूसरे दिन उन्होंने राजा नंदके यहाँपर पारणा किया । वहाँसे अन्यत्र विहार कर एक मास बाद वापिस वे उसी वनमें आये । अशोक वृक्षके नीचे कायोत्सर्ग धार शुक्लध्यानके साथ कर्मोंका नाश कर माघ वदि ss के दिन चन्द्र नक्षत्र में प्रभु केवलज्ञानी हुए । इन्द्रादि देवोंने केवलज्ञानकल्याणक किया । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy