SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 179
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४६ wwwmmmmmm जैन-रत्न में उन्हीं मुनियोंके साथ प्रभु मोक्षमें गये । इन्द्रादि देवोंने मोक्षकल्याणक मनाया। ___२५ हजार पूर्व कुमार वयमें, ५० हजार पूर्व राज्य कालमें, २५ हजार पूर्व दीक्षा कालमें, इस प्रकार प्रभुकी आयुके १ लाख पूर्व व्यतीत हुए । उनका शरीर ९० धनुष ऊँचा था। सविधिनाथजीके मोक्ष जानेके बाद नौ कोटि सागरोपम वीते, तब शीतलनाथजी मोक्षमें गये । ११ श्री श्रेयांसनाथ-चरित भवरोगार्तजन्तूना-मगदंकारदर्शनः । निःश्रेयसश्रीरमणः श्रेयांसः श्रेयसेऽस्तु वः॥ भावार्थ--जिनका दर्शन ( सम्यक्त्व ) संसाररूपी रोगसे पीडित जीवोंके लिए वैद्यके समान है और जो मोक्षरूपी लक्ष्मीके स्वामी हैं वे श्री श्रेयांसनाथ भगवान तुम्हारे कल्याणके हेतु होवें। पुष्करद्वीपमें कच्छ देश है । उसमें क्षेमा नामकी एक नगरी थी । वहाँका राजा नलिनगुल्म था। १ प्रथम भव उसने बहुत दिनों तक राज्य किया । एक ___ समय संसारसे उसको वैराग्य हुआ । उसने वज्रदन्त मुनिके पाससे दीक्षा ली और बीस स्थानककी आराधना कर तीर्थकर गोत्र बाँधा। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy