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________________ जैन - रत्न पुष्करद्वीपमें वज्र नामक देश है । उसकी राजधानी सुसीमा नामक नगरी थी । उसका राजा पद्मोत्तर था १ प्रथम भव उसने बहुत वर्षों तक राज्य किया । संसारसे वैराग्य होने पर उसने त्रिसाद्य नामक आचार्यके पाससे दीक्षा ली, तीव्र तप सहित शुद्ध व्रतोंको पाला और बीस स्थानककी आराधनाकर तीर्थंकर कर्म बाँधा । १४४ २ द्वितीय भव - अन्तमें मरकर वह दशवें देवलोकमें देव हुआ। वहाँसे च्यवकर पद्मोत्तरका जीव भरत क्षेत्रके ३ तीसरा भव भद्रिला नगरके राजा दृढरथकी रानी नंदाके उदरमें, वैशाख सुदि ६ के दिन पूर्वाषाढा नक्षत्रमें आया । इन्द्रादि देवोंने गर्भकल्याणक मनाया | गर्भका समय पूर्ण होनेपर नंदा रानीने माघ वदि १२ के दिन पूर्वाषाढा नक्षत्रमें श्रीवत्स लक्षणयुक्त, पुत्रको जन्म दिया । इन्द्रादि देवोंने जन्मकल्याणक मनाया । राजाने हर्षित होकर बहुत दान दिया । पहिले राजाको गर्मी बहुत लगती थी, परन्तु यह पुत्र गर्भमें आया, उसके बाद राजानें एक दिन रानीका अंग छुआ, इसीसे राजाकी बहुत दिनोंकी गर्मी शान्त हो गई । इस कारणसे उन्होंने पुत्रका नाम शीतल नाथ रखा । शिशु कालमें प्रभुकी अनेक धायें सेवा करती थीं । दूजके चाँद समान बढ़ते हुए प्रभु युवा हुए । पिताने अनेक राजकन्याओंके साथ उनके व्याह कर दिये । उन्होंने २५ हजार पूर्व तक युवराज पदके मुख भोगे । और ५० हजार पूर्व तक Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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