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१० श्री शितलनाथ-चरित
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लगे। भद्रिक लोग उन्हें, उपकारी समझकर, द्रव्यादि भेटमें देने लगे । लोभ बुरी बला है । उन श्रावकोंने लोभके वश होकर उपदेश दिया:-" तुम लोग भूमिदान, स्वर्णदान, रूप्यदान, गृहदान, अश्वदान, राजदान, लोहदान, तिलदान, कपासदान
आदि दान दिया करो । इन दानोंसे तुमको इस लोकमें और 'परलोकमें महान फलोंकी प्राप्ति होगी।"
इस उपदेशके अनुसार लोग दान भी देने लगे । लोभसे मार्गच्युत बने हुए उन श्रावकोंने दान भी खुद ही लेना आरंभ कर दिया । वे ही लोगोंके गृहस्थ गुरु बन गये । इन श्रावकोंमें उन लोगोंकी सन्तति मुख्य थी जो भरत चक्रवर्तीके समयमें 'माहन 'माहन । बोलते हुल ब्राम्हणोंके नामसे मशहूर हो गये थे। और इसी लिए वे श्रावक मुख्यतया ब्राह्मण कहलाये । ऐसा अनुमान होता है ।
१० श्री शीतलनाथ-चरित
सत्त्वानां परमानंद-कंदो दनवांबुदः ।
स्याद्वादामृतनिस्वंदी, शीतलः पातु वो जिनः॥ भावार्थ-प्राणियोंके उत्कृष्ट आनंदके अंकुर प्रकट होनेमें नवीन मेघके समान और स्याद्वाद मतरूपी अमृतको बरसानेवाले श्री शीतलनाथ तुम्हारी रक्षा करें।
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