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________________ १० श्री शितलनाथ-चरित १४३ लगे। भद्रिक लोग उन्हें, उपकारी समझकर, द्रव्यादि भेटमें देने लगे । लोभ बुरी बला है । उन श्रावकोंने लोभके वश होकर उपदेश दिया:-" तुम लोग भूमिदान, स्वर्णदान, रूप्यदान, गृहदान, अश्वदान, राजदान, लोहदान, तिलदान, कपासदान आदि दान दिया करो । इन दानोंसे तुमको इस लोकमें और 'परलोकमें महान फलोंकी प्राप्ति होगी।" इस उपदेशके अनुसार लोग दान भी देने लगे । लोभसे मार्गच्युत बने हुए उन श्रावकोंने दान भी खुद ही लेना आरंभ कर दिया । वे ही लोगोंके गृहस्थ गुरु बन गये । इन श्रावकोंमें उन लोगोंकी सन्तति मुख्य थी जो भरत चक्रवर्तीके समयमें 'माहन 'माहन । बोलते हुल ब्राम्हणोंके नामसे मशहूर हो गये थे। और इसी लिए वे श्रावक मुख्यतया ब्राह्मण कहलाये । ऐसा अनुमान होता है । १० श्री शीतलनाथ-चरित सत्त्वानां परमानंद-कंदो दनवांबुदः । स्याद्वादामृतनिस्वंदी, शीतलः पातु वो जिनः॥ भावार्थ-प्राणियोंके उत्कृष्ट आनंदके अंकुर प्रकट होनेमें नवीन मेघके समान और स्याद्वाद मतरूपी अमृतको बरसानेवाले श्री शीतलनाथ तुम्हारी रक्षा करें। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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