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जैन-रत्न
चन्द्रप्रभुका कुल आयु प्रमाण १० लाख पूर्वका था। उससे उन्होंने ढाई लाख पूर्व शिशुकालमें बिताये, २४ पूर्व सहित साढ़े छः लाख पूर्व पर्यंत राज्य किया और २४ पूर्व सहित एक लाख पूर्व तक वे साधु रहे । उनका शरीर १५० धनुष ऊँचा था।
सुपाचं स्वामीके मोक्ष गये पीछे नौ सौ कोटि सागरोपम बीतने पर चन्द्रप्रभजी मोक्षमें गये ।
९ श्री पुष्पदंत (सुविधिनाथ) चरित
करामलकवद्विश्वं, कलयन् केवलश्रिया।
अचिंत्यमाहात्म्यनिधिः, सुविधिर्बोधयेस्तु वः भावार्थ--जो अपनी केवलज्ञानरूपी लक्ष्मीसे जगत्को हाथके आँक्लेकी तरह जानते हैं और जो अचिन्त्य (जिसकी कल्पना भी न हो सके ऐसे ) माहात्म्यरूपी दौलतवाले हैं वे सुविधिनाथ तुम्हारे लिए बोधके कारण होओ। पुष्करवर द्वीपमें पुष्कलावती नामक देश है। उसकी नमरी
पुण्डरीकणी थी। उस नगरीका राजा महापद्म १ प्रथम भव था । वह संसारसे विरक्त हो गया और जगनंद
गुरुके पाससे उसने दीक्षा ले ली। वह एकावली तपको पालता था, इससे उसने तीर्थकर कर्म बाँधा। २ दूसरा भव
- अन्तमें वह शुभ ध्यानपूर्वक मरकर वैजयंत 'विमानमें महर्द्धिक देव हुआ।
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