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८ श्री चंद्रप्रभ-चरित
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भगवानने वर्षीदान दिया और फिर पौष वदी १३ के दिन अनुराधा नक्षत्रमें सहसाम्रवन जा, एक हजार राजाओंके साथ दीक्षा ली। इन्द्रादि देवोंने दीक्षाकल्याणक मनाया। मुनिपदके दूसरे दिन सोमदत्त राजाके यहाँ क्षीरान्नका पारणा किया ।
फिर तीन मास तक विहार कर भगवान वापिस सहसाम्र उद्यानमें पधारे, और पुन्नाग वृक्षके नीचे कायोत्सर्ग धारण. किया । फाल्गुन वदि ७ के दिन अनुराधा नक्षत्रमें भगवान:को केवलज्ञा हुआ। इन्द्रादि देवोंने ज्ञानकल्याणक मनाया और समोशरणकी रचना की। सिंहासनपर विराजकर प्रभुने भव्य जीवोंको उपदेश दिया।
पृथ्वीपर विहार करते समय प्रभुका परिवार इस प्रकार था,९३ गणधर, ढाई लाख साधु, ३ लाख ८० हजार साध्वियाँ, २ हजार चौदह पूर्वधारी, ९ हजार अवधिज्ञानी, ९ हजार मनःपर्ययज्ञानधारी, १० हजार केवली, १४ हजार वैक्रियक लब्धिवाले, ७ हजार ६ सौ वादी, ढाई लाख श्रावक, ४ लाख ९१ हजार श्राविकाएँ तथैव विजय नामक यक्ष और भ्रकुटि नामकी शासन देवी । ___ २४ पूर्व तीन मास न्यून एक लाख पूर्व तक विहार कर भगवान निर्वाणकाल समीप जान सम्मेद शिखर पर्वतपर पधारे। वहाँपर उन्होंने एक हजार मुनियोंके साथ अनशन व्रत धारण किया। और एक मासके अन्तमें योगोंका निरोध कर भाद्रपद वदि ७ के दिन श्रवण नक्षत्रमें उक्त मुनियोंके साथ वे मोक्ष गये । इन्द्रादि देवोंने मोक्षकल्याणक किया।
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