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(ख)
श्रीहेमचन्द्राचार्य भगवानके बाद जितने चरित्र लिखे गये हैं वे प्रायः सभी संस्कृतमें ही हैं। कारण उस समय संस्कृत भाषाका प्राधान्य था।
क्रमशः समय बीतता गया और साथ ही भाषा भी बदलती गई। लोग अपनी बोलचालकी भाषाहीमें धार्मिक पुरुषोंके जीवन चरित्र देखनेको उत्सुक हुए । समयको पहचाननेवाले उपकारी महात्माओंने और आचार्योंने उस समयकी प्रचलित भाषामें रास वगैरहकी रचना कर धार्मिक लोगोंकी धर्मभावनाको प्रफुल्लित और समाजको धर्मोन्मुख रखा । द्रव्य-क्षेत्रकाल और भावके अनुसार गीतार्थ पूर्व महापुरुषोंने मूल वस्तुको उसी स्वरूपमें कायम रख बाहरके रूपोंमें अनेक परिवर्तन किये हैं। आज भी अनेक परिवर्तन हो रहे हैं।
संसारमें सभी प्राणी निमित्त पाकर आचरण करनेवाले हैं । अनादिकालसे इस आत्माको शुभाशुभ निमित्त मिलते रहे हैं। अनादि स्वभाववश यह आत्मा अशुभ निमित्त पाते ही उस तरफ खिंच जाता है। परंतु शुभकी तरफ अच्छे निमित्त पानेपर भी बड़ी मुश्किलसे खिंचता है। जबतक निमित्त पाकर आत्मा शुभ मार्गकी तरफ नहीं झुकता है तबतक कभी उसका छुटकारा नहीं होनेवाला है । यह बात निर्विवाद और सुस्पष्ट है ।
निमित्त कहाँ तक इस आत्माको साहाय्य करता है इसका एक सुंदर आदर्श उदाहरण जो शास्त्रोंमें दिया गया है वह दिखलाना अनुचित नही समझा जावेगा ।
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