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________________ ३ श्री संभवनाथ-चरित ११९ वे अवधिज्ञान द्वारा प्रभुका निर्वाण समय निकट जान सम्मेत शिखरपर आए और देवताओं सहित प्रदक्षिणा देकर प्रभुकी सेवा करने लगे। ___जब पादोपगमन अनशनका एक मास पूर्ण हुआ तब प्रभुका निर्वाण हो गया। उस दिन चैत्र शुक्ला पंचमीका दिन था; चन्द्रमा मृगशिर नक्षत्रमें आया था। इन्द्रादि देवोंने मिलकर प्रभुका निर्वाण-कल्याणक किया। उनका शरीर ४५० धनुष ऊँचा था । प्रभुने अठारह लाख पूर्व कौमारावस्थाम, तरेपन लाख पूर्व चौरासी लाख वर्ष राज्य करने में, बारह बरस छदमस्थावस्थामें और चौरासी लाख बारह वर्ष कम एक लाख पूर्व केवल ज्ञानावस्थामें बिताये थे। इस तरह बहत्तर लाख पूर्वकी आयु समाप्त कर भगवान अजितनाथ, ऋषभदेव प्रभुके निर्वाणके पचास लाख करोड़ सागरोपम वर्षके बाद, मोक्षमें गये । ३ श्री संभवनाथ-चरित त्रैलोक्य प्रभवे पुण्य संभवाय भवच्छिदे । श्रीसंभव जिनेन्द्राय मनो भवभिदे नमः॥ भावार्थ-तीन लोकके स्वामी, पवित्र जन्म वाले, संसारको छेदनेवाले और कामदेवको भेदनेवाले श्री संभवनाथ जिनेन्द्रको मैं नमस्कार करता हूँ। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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