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२ श्री अजितनाथ-चरित
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धूमघामके साथ प्रभुकी वन्दना करनेके लिये आया और भक्तिपूर्वक नमस्कारकर अपने योग्य स्थान पर बैठ गया । इन्द्र और सगरने प्रभुकी स्तुति की।
भगवानने देशना दी । श्रीमद् हेमचन्द्राचार्यने इस देशनामें धर्मध्यानका वर्णन किया है और उसके चौथे पाये संस्थानविजयका-जिममें जंबूद्वीपकी, रचना मेरुपर्वत आदिका उल्लेख है-वर्णन विस्तार पूर्वक किया है। .
देशना समाप्त होने पर सगर चक्रवर्तीके पिता वसुमित्रनेजो अब तक भावयति होकर रहे थे-प्रभुसे दीक्षा ले ली।
इसके बाद गणधर नामकर्मवाले और श्रेष्ठ बुद्धिवाले सिंहसेन आदि पचानवे मुनियोंको समस्त आगमरूप व्याकरणके प्रत्याहारोंकीसी उत्पत्ति, विगम और ध्रौव्यरूप त्रिपदी सुनाई। रेखाओंके अनुसार जैसे चित्रकार चित्र खींचता है वैसे ही त्रिपदीके अनुसार गणधरोंने त्रिपदीके अनुसार सहित द्वादशांगीकी रचना की।
श्रीअजितनाथ भगवानके तीर्थका अधिष्ठाता ' महायज्ञ । नामका यक्ष हुआ और अधिष्ठात्री देवी हुई · अजितबला ।। यक्षका वर्ण श्याम है, वाहन हाथीका है, हाथ आठ हैं। देवीका रंग स्वर्णसा है । उसके हाथ चार हैं । वह लोहासनाधिरूढ है। ___ भ्रमण करते हुए एक बार भगवान कौशांबी नगरीके पास आये । वहाँ समवसरणकी रचना हुई। भगवानने देशना देनी शुरू की । उसी समय एक ब्राह्मण पतिपत्नी आये । वे भगवानको नमस्कार कर, परिक्रमा दे, बैठ गये ।
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