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________________ श्री अजितनाथ - चरित १०३ राशि यमुनाकी तरंगों के समान कुटिल और श्याम थी । उनका ललाट अष्टमीके चंद्रमा के समान दमकता था । उनके गाल स्वर्णके दर्पण की तरह चमकते थे । उनके नेत्र नीले कमल के समान स्निग्ध और मधुर थे । उनकी नासिका दृष्टिरूपी सरोवर के मध्य भागमें स्थित पालके समान थी । उनके होठ बिंब फलके जोड़ेसे जान पड़ते थे । सुंदर आवर्त्तवाले कर्ण सीपसे मनोहर लगते थे। तीन रेखाओंसे पवित्र बना हुआ उनका कंठ शंख के समान शोभता था । हाथी के कुंभस्थलकी तरह उनके स्कंध ऊँचे थे। लंबी और पुष्ट भुजाएँ भुजंगका भ्रम कराती थीं । उरस्थल स्वर्णशैलकी शिलाके समान शोभता था । नाभि मनकी तरह गहन थी । वज्रके मध्य भागकी तरह उनका कटि प्रदेश कुश था । उनकी जाँघ बड़े हाथीकी सूंडसी सरल और कोमल थी । दोनों कुमार अपने यौवनके तेज और शरीरके संगठनसे बहुत ही मनोहर दीखते थे । सगर अपने रूप और पराक्रमादि गुणोंसे मनुष्यों में प्रतिष्ठा पाता, जैसे इन्द्र देवोंमें पाता है । और अजित स्वामी अपने रूप और गुणसे, मेरु पर्वत जैसे सारे पर्वतोंमें अधिक मानद है वैसे ही, देवलोकवासी, ग्रैवेयकवासी और अनुत्तर विमानवासी देवोंसे एवं आहारक शरीर से भी अधिक माननीय थे । 1 रागरहित अजित प्रभुको राजाने और इन्द्रने व्याह करनेके लिए पूछा । प्रभुने अपने भोगावली कर्मको जान अनुमति दी । इनका व्याह हुआ । सगरका भी ब्याह हो गया । ये आनंदसे सुखोपभोग करने लगे । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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