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________________ जैन-रत्न ~~~~~~~mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm वाक्यका उच्चारण करते थे, इसलिए लोगोंने उनका नाम 'माहना रक्खा । राजाने उन लोगोंको भोजन दिया, इसलिए प्रजा भी उन्हें जिमाने लगी। उनके स्वाध्यायके लिए-ज्ञानके लिए ग्रंय बनाये गये। उनका नाम वेद (ज्ञान) रक्खा गया। माहन शब्द अपभ्रंश होते होते 'ब्राह्मण' हो गया। अतः वे लोग और उनकी सन्तान 'ब्राह्मण' के नामसे ख्यात हुए। भरत चक्रवर्तीके बाद जब कांकणी रत्नका अभाव हो गया तब उनके पुत्र मूर्ययशाने स्वर्णके तीन सूत बनाकर उन्हें पहिननेके लिए दिये । पछिसे शनैः शनैः ये मृत रूईके हो गये और उसका नाम यज्ञोपवीत पड़ा। __ एक बार भगवानके समवसरणमें चक्रवर्ती भरतके प्रश्न करनेपर प्रभुने कहा कि, इस अवसर्पिणी कालमें भरतक्षेत्रमें मेरे बाद तेईस तीर्थकर होंगे और तेरे बाद ११ चक्रवर्ती तथा ६ वासुदेव ६ बलदेव और ६ प्रतिवासुदेव होंगे। दीक्षाके पश्चात जब लाख पूर्व बीते तब प्रभुने अपना निर्वाण समय नजदीक समझ अष्टापद पर्वतकी तरफ प्रयाण किया। वहाँ जाकर दस हजार मुनियोंके साथ प्रभुने चतुर्दश तप ( छः उपवास ) करके पादोपगमनं अनशन किया। भरत चक्रवर्ती अनशनके समाचार सुनकर व्याकुल हुए और अपने परिवार सहित अष्टापदपर पहुँचे । ध्यानस्थ प्रभुको नमस्कारकर उनके सामने बैठ गये। चौसठ हन्द्रोंके भी आसन काँपे । उन्होंने प्रभुका निर्वाण समय जाना । वे प्रभुके पास आये और प्रदक्षिणा देकर पाषाणमूर्तिकी भाँति स्थिर होकर सामने बैठ गये। १-वृक्षकी तरह स्वस्थ और निश्चेष्ट रहनेको 'पादोपगमन ' कहते हैं। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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