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________________ ८९ श्रीआदिनाथ-चरित wwwmww~~~~~..............mm एक बार वे रुग्ण हुए। साधुओंने व्रत-त्यागी समझकर उनकी सेवा नहीं की। इससे उनको विशेष कष्ट हुआ और उन्होंने अपने समान कुछको बनानेका विचार किया । ये जब अच्छे होकर एक बार प्रभुकी देशनामें बैठे हुए थे तब कपिल नामक राजकुमार देशना सुनने आया। भगवानका प्रतिपादित धर्म उसे बहुत कठोर जान पड़ा । उसने इधर देखा । विचित्र वेषवाले मरिचि उसके नजर आये । उसने उनके पास आकर उन्हें धर्मोपदेश देनेके लिए कहा । अपना सहायक करनेके लिए उन्होंने अपने कल्पित धर्मका उपदेश दिया । कपिलको अपना शिष्य बनाया तभीसे यह परिव्राजकमत प्रचलित हुआ। ब्राह्मणोंकी उत्पत्ति-एक बार भरत चक्रवर्तीने सारे श्रावकोंको बुलाकर कहा कि, तुम लोगोंको कृषि आदि कार्य न करके केवल पठनपाठनमें और ज्ञानार्जनमें ही अपना समय बिताना चाहिए और भोजन हमारे रसोड़ेमें आकर कर जाना चाहिए। वे ऐसा ही करने लगे । मुफ्तका भोजन मिलता देख कर कई आलसी लोग भी अपनेको श्रावक बता बताकर भोजन करने आने लगे। तब श्रावकोंकी परीक्षा करके उन्हें भोजन दिया जाने लगा। जो श्रावक होते थे उनके, ज्ञान दर्शन और चारित्रके चिन्हवाली, कांकणी रत्नसे तीन रेखाएँ कर दी जाती थीं। भरतने उन्हें यह आज्ञा दे रक्खी थी कि तुम जब भोजन करके रवाना हो तब मेरे पास आकर यह पद्य बोला करो " जितोभवान् वर्द्धते भीस्तस्मान्माहन माहन ।" अर्थात्-तुम जीते हुए हो; भय बढ़ता है इसलिए ( आत्मगुणको ) न मारो न मारो । सदैव उच्च स्वरसे वे लोग इस Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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