________________
श्रीआदिनाथ-चरित
mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm
सिद्ध हुई । देवताओंने उनके शरीरको, सत्कार करके क्षीरसमुद्रमें निक्षिप्त किया-डाला।
भरत समवसरणमें पहुँचे । प्रभुके तीन प्रदक्षिणा दे, प्रणामकर इन्द्रके पीछे जा बैठे । भगवानने सर्व भाषाओंको स्पर्श करनेवाली ( अर्थात् जिसको प्रत्येक भाषा जाननेवाला समझ सके ऐसी) पैंतीस अतिशयवाली और योजनगामिनी वाणीसे देशना दी । उसमें संसारका स्वरूप और उससे छूटनेका उपाय बताया तथा सम्यक्त्वके प्रकारों और श्रावकके वारह व्रतोंका खास तरहसे विवेचन किया।
प्रभुकी देशना सुनकर,भरत राजाके पुत्र ऋषभसेनने भरतके अन्यान्य पाँच सौ पुत्रों और सात सौ पौत्रों सहित दीक्षा ले ली। भरतके पुत्र मरीचीने भी दीक्षा ली । ब्राह्मीने भी उसी समय दीक्षा ले ली। सुंदरीने भी दीक्षा लेना चाहा; परन्तु भरतने आज्ञा नहीं दी। इसलिए वह श्राविका हुई । भरतने भी श्रावकके व्रत ग्रहण किये । मनुष्य तिर्यंच और देवताओंकी पर्षदामेंसे, कइयोंने मुनिव्रत ग्रहण किया, कई श्रावक बने
और कइयोंने केवल सम्यक्त्व ही धारण किया । तापसोंमेंसे कच्छ और महाकच्छको छोड़कर और सभीने प्रभुके पास आकर फिरसे दीक्षा ले ली। उसी समयसे ऋषभसेन (पुंडरीक ) आदि साधुओं, ब्राह्मी आदि साध्वियों, भरत आदि श्रावकों और सुंदरी आदि श्राविकाओंके समूहको मिलाकर चतुर्विध संघकी स्थापना हुई । उस चतुर्विध संघकी योजना आज भी है। और उसके द्वारा अनेक जीवोंका कल्याण होता है।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com