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________________ श्रीआदिनाथ-चरित ३ थे। तीन सौ अध्यासी करोड़ और अस्सी लाख स्वर्ण मुद्राओंका दान प्रभुने एक बरसमें किया था । यह धन देवताओंने लाकर पूरा किया था। प्रभु दीक्षा लेनेवाले हैं यह जानकर लोग भी वैराग्योन्मुख हो गये थे, इसलिए उन्होंने उतना ही धन ग्रहण किया था, जितनी उनको आवश्यकता थी। तत्पश्चात् इन्द्रने आकर प्रभुका दीक्षा-कल्याणक* किया । चैत्रकृष्ण अष्टमीके दिन जब चंद्र उत्तरा आषाढा नक्षत्रमें आया था, तब दिनके पिछले पहरमें प्रभुने चार मुष्टिसे अपने केशोंको लुचित किया। जब पाँचवीं मुष्टिसे प्रभुने अवशेष केशोंका लोच करना चाहा तब इन्द्रने उतने केश रहने देनेकी प्रार्थना की। प्रभुने यह प्रार्थना स्वीकार की; क्योंकि,-'स्वामी अपने एकान्त भक्तोंकी याचना व्यर्थ नहीं करते हैं। प्रभुके दीक्षा महोत्सवसे संसारके अन्यान्य जीवोंके साथ नारकी जीवोंको भी सुख हुआ । उसी समय प्रभुको मनुष्य क्षेत्रके अंदर रहनेवाळे समस्त संज्ञी पचेन्द्री जीवोंके मनोद्रव्यको प्रकाशित करनेवाला मनःपर्ययज्ञान प्रकट हुआ। प्रभुके साथ ही कच्छ, महाकच्छ आदि चार हजार राजाओंने प्रभुके साथ दीक्षा ले ली । प्रभु मौन धारणकर पृथ्वीपर विचरण करने लगे। पारणेवाले दिन प्रभुको कहींसे भी आहार नहीं मिला । क्योंकि लोग आहारदानकी विधिसे अपरिचित थे । वे तो प्रभुको पहिलेके समान ही घोड़े, हाथी, वस्त्र, आभूषण, आदि भेट करते थे, ___ *-देखो तीर्थकर चरित-भूमिका, पृष्ट २५ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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