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श्रीआदिनाथ-चरित
प्रभुकी सन्तान जब योग्य वयको प्राप्त हुई; सब उन्होंने प्रत्येकको भिन्न २ कलाएँ सिखाईं। __ भरतको ७२ कलाएँ*सिखलाई थीं। भरतने भी अपने भाइयोंको वे कलाएँ सिखलाई । बाहुबलिको प्रभुने हस्ति, अश्व, स्त्री और पुरुषके अनेक प्रकारके भेदवाले लक्षणोंका ज्ञान दिया। ब्राह्मीको दाहिने हाथसे अठारह लिपियाँ बतलाई, और सुंद७६-दीर्घ बाहु, ७७-मेघ, ७८-सुघोष; ७९-विश्व; ८०-वराह ८१-सुसन; ८२-सेनापति; ८३-कुंजरवल; ८४-जयदेव; ८५-नागदत्त; ८६-काश्यप; ८७-बल; ८८-वीर; ८९-शुभमति; ९०-सुमति; ९१-पद्मनाभ; ९२-सिंह; ९३-सुजाति; ९४-संजय; ९५-सुनाम; ९६-मरुदेव; ९७-चित्तहर; ९८-सरबर; ९९-दृढरथ; १००-प्रभंजन; __ * कन्याओं के नाम-ब्राह्मी और सुंदरी।
*---पुरुष की ७२ कलाओंके नाम ये हैं,-लेखन गणित, गीत, मृत्य, वाद्य, पठन, शिक्षा, ज्योतिष, छंद, अलंकार, व्याकरण, निरुक्ति, काव्य कात्यायन, निघटुं, गजारोहण, अश्वारोहण उन दोनों की शिक्षा, शास्त्राभ्यास, रस, यंत्र, मंत्र, विष, खन्य गंधवाद, प्राकृत, संस्कृत, पैशाचिक, अपभ्रंश, स्मृति, पुराण, विधि, सिद्धान्त, तर्क, वैदक, वेद, आगम, संहिता इतिहास; सामुद्रिक विज्ञान, आचार्य विद्या; रसायन, कपट, विद्यानुवाद, दर्शन, संस्कार, धूर्त, संबलक, मणिकर्म, तरुचिकित्सा खेचरीकला, अमरीकला, इन्द्रजाल, पाताससिद्धि, पंचक, रसबती, सर्वकरणी, प्रासादलक्षण, पण, चित्रोपला, लेप, चर्मकर्म, पत्रछेद,नखछेद, पत्रपरीक्षा, वशीकरण,काष्ट घटन. देश भाषा, गारुड, योगांग धातुकर्म, केवल विधि, शकुन रुत ।
६-इंस, भत, यज्ञ, राक्षस, उदि, यौवनी, तुरकी, किरी, द्राविडी, सेंधवी, मालवी, बड़ी, नागरी, भाटी, पारसी, आनिमित्ति, चाणाकी, मूल
देवी । ये अठारह लिपियाँ हैं । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com