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कुरुक्षेत्र महायुद्ध के बाद इस नगरी का पतन शुरू हुआ। बाद में इन्द्रप्रस्थ बसा। गंगा नदी इस अपमान को न सह सकी और उसने अपनी धाराओं से इसे समाप्त कर दिया, इससे यह नगरी जंगल के रूप में परिवर्तित हो गई।
चौबीसवें तीर्थंकर श्री महावीर स्वामी के पधारने का गौरव भी इसी स्थान को मिला, जहाँ पर पोट्टिल नाम शेठ रहता था, इन्होंने श्री महावीर स्वामी से दीक्षा ली और १ मास की संलेषणा करके मृत्यु को प्राप्त हुआ और सर्वार्थसिद्धि नाम के देवलोक में उत्पन्न हुआ।
शिवराज ने भी श्री महावीर स्वामी से दीक्षा ग्रहण की और उग्र तपस्या की, शिवराजर्षि कहलाये । ___ और भी अनेक जीव हुए जिन्होंने धर्म साधन कर यहाँ से मुक्ति पाई।
संवत् १३४५ से १३५८ के बीच मे दौलताबाद से बाहुड़ के पुत्र बोहित्थ संघपति के साथ संघ सहित श्री जिनप्रभसूरिजी मोहमद शाह तुगलक से जैन तीर्थों की यात्रा करने का फरमान लेकर यहाँ पधारे-उन्होंने अपने ग्रंथ विविध तीर्थ कल्प में यहाँ पर ( हस्तिनापुर में ) श्री शान्तिनाथ जी श्री कुंयनाथजी श्री अरनाथजी और मल्लीनाथजी के सुन्दर जैन मन्दिर और अंबिका देवी के देवल का उल्लेख किया है।
शत्रुजय तीर्थ के उद्धारक समराशाह संघपति ने पाटन से यहाँ की यात्रा की थी।
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