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चक्रवत्तियों ने भौतिक लक्ष्मी का त्याग करके यहाँ चरित्रग्रहण किया।
नवें चक्रवर्ती महापद्म और उनके बड़े भाई विष्णु कुमार को भी जन्म देने का श्रेय भी इसी नगरी को प्राप्त है। महापद्म के मंत्री नमूची ने जैन श्रमण संघ पर उस समय बड़ा उपद्रव किया था। विष्णुकमार ने दीक्षा ग्रहण कर बड़ी तपस्या की थी और लब्धी धारी हुए, इन्होंने नमूची का उपद्रव मिटाया।
प्रसिद्ध भगवंशीय परशराम का जन्म भी इसी नगरी में हुआ था।
उन्नीसवें तीर्थंकर श्री मल्लीनाथ जी के समवशरण और देशना का गौरव भी इसी नगर को है।
इसी नगरी में सात किरोड सुनयों के मालिक गंगादत्त हुये हैं। और कार्तिक सेठ को जन्म भूमि होने का लाभ भी इसी को है जिन्होंने एक हजार श्रेष्ठी पुत्रों के साथ बीसवें तीर्थकर श्री मुनिसुव्रत स्वामी के पास दीक्षा ग्रहण की और आत्मकल्याण कर काल धर्म पाकर सौधर्मेन्द्र बना । ___ सुप्रसिद्ध पांडव और कौरवों की जन्मभूमि, क्रीडा और लीला का भी यही स्थान है। इस नगरी के उस वक्त दो विभाग थे, एक का नाम हस्तिनापुर पाण्डवान और दूसरे का हस्तिनापर कौरवान था जो कि आज तक सरकारी कागजों में इसी नाम से चले आते हैं।
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