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________________ ( १० ) मथुरा में एक प्राचीन खंभे पर कङ्काली देवी की मत्ति है। और उसके पास ही में एक टीला आ गया है अतएव उस टीला का नाम ही कंकाली टीला कहा जाता है। मथुरा से नैर्ऋत्य कोण में आगरा और गोवर्धन जाने वाली सड़क के बीच ५०० फुट लंबा ३५० फुट चौड़ा विस्तार वाला यह कंकाली टीला है । उसके अन्दर से दो ढाई हजार वर्ष से भी प्राचीन कई वस्तुएँ निकली हैं। जिनमें प्राचीन जैन मन्दिरों के भग्न खण्डहर जैसे-स्तूप, तोरण, आयोगपट्ट, खंभे, खंभा पर की पट्टिये, छत्र और मूर्तियें आदि मिली हैं और उन ध्वंसाऽवशेष खंडहरों में कोई ११० प्राचीन शिलालेख भी उपलब्ध हुए हैं। इन शिला. लेखों में जैनधर्म संबंधी कई घटनाएँ भी हैं। उन प्राचीन शिलालेखों से यह भी सिद्ध हो चुका है कि:-"जैनधर्म न तो बौद्ध धर्म से पैदा हुआ है और न वेदान्तिक धर्म से, तथा न यह बौद्ध धर्म एवं वेदान्तिक धर्म की कोई शाखा ही है किन्तु जैनधर्म एक स्वतन्त्र धर्म और बहुत प्राचीन धर्म है। इतना ही क्यों बल्कि उन शिलालेखों में यह भी स्पष्ट हो गया है कि महात्मा बुद्ध से दो सौ वर्ष पूर्व भी मथुरा में जैन मन्दिर विद्यमान थे। जैनधर्म के आचार्य समय २ पर वहां (मथुरा में) आकर धर्मोपदेश कर लोगों को अपनी ओर आकर्षित किया करते थे। तथा जैनों में लिये भी दीक्षा लेकर भ्रमण किया करती थीं" इत्यादि ये शिलालेख प्राचीनता पर खूब प्रकाश डालते हैं। यों तो कङ्काली टीला को वहां के लोग खोद २ कर प्राचीन ईटें आदि ले जाया करते थे। पर विशेष खुदाई के काम के लिए सब से पहिला जनरल कनिंघहम का ध्यान कङ्काली टीला की Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034865
Book TitleJain Mandiro ki Prachinta aur Mathura ka Kankali Tila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpamala
Publication Year1938
Total Pages34
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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