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पर घातक आक्रमण किया होगा और तब उन जैनों ने उस स्थान को अपने लिए सापद जान अन्य नगरों का आश्रय लिया होगा। खैर ! जो कुछ हो पर यह तो निर्विवाद है कि कोई दिन मथुरा में भी जैनों का अस्तित्व था । और वह आज मथुरा के इतस्ततः भूमि भाग का खोद काम करने से स्वतः परिस्फुट हो जाता है ।
मथुरा की खुदाई से भूगर्भ में से इतने जैन स्मारक एवं खण्डहर उपलब्ध हुए हैं कि वे भूतकालीन जैनियों की जाहुजलाली का वर्तमान में ठीक-ठीक परिचय करा रहे हैं। __ मथुरा के जिस कङ्काली टीला ने, ऐतिहासिक क्षेत्र पर जबर्दस्त प्रकाश डाला है, पुरातत्त्वज्ञों की नसों में एक नये सिरे का बिजली का चमत्कार प्रकट किया है। प्राचीन पदार्थों से अजायबघरों की शोभा बढ़ाई है और प्राचीन इतिहास लिखने में अच्छी सुविधाएँ कर दी हैं। आज हम उसी कङ्काली टोला का थोड़ा सा हाल अपने पाठकों की सेवा में रख देना चाहते हैं । पाठक उसे पढ़ कर अवश्य लाभ उठावें ।
__मथुरा का कङ्काली टीला [मथुरा के कंकाली टीला के विषय में कई पुरातत्त्वज्ञ अंग्रेजों ने और पौर्वात्य विद्वानों ने अनेक प्रकार से शोध खोज कर अपनी विद्वता से नाना लेख लिखे हैं जिनसे इतिहास क्षेत्र पर अच्छा प्रकाश पड़ा है। उन सब लेखों के सारांश रूप में श्रीमान् चन्द्रचूड़ चतुर्वेदी ने 'सरस्वती' मासिक पत्रिका सं० १९८६ आश्विन मास के अङ्क में एक लेख प्रकाशित करवाया है । उस लेख और भनेक अन्य लेखों का सांराश लेकर मैंने यह लेख आपकी सेवा में रखने का प्रयत्न किया है। 'लेखक' Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com