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________________ ( ११ ) ओर पहुँचा और उन्होंने ई० सं० १८७१ में उसका एक विभागः खुदवा कर कई प्राचीन पदार्थ प्राप्त किये। बाद ई. सं० १८७५ में खास मथुरा के प्रसिद्ध कलेक्टर ग्राऊज साहब ने इसे खुदवा कर प्राचीन मसाला हासिल किया। बाद में ई० सं० १८८७ से १८९६ तक डाक्टर ब्रजेस और डाक्टर फुहरर ने कङ्काली टीला पर कई बार खोद काम करवाया और उसके अन्दर से अनेक प्राचीन साधन एकत्र किये और वह लखनऊ के अजायबघर में रखे गये। इनके पश्चात भी कई विद्वानों ने कई बार इस टीलो . को खुदवाया और अनेक प्राचीन पदार्थ प्राप्त किये । और वही प्राचीन सामग्री आज इतिहास का अमूल्य साधन बन गई है। जनरल कनिंघहम को जितने शिलालेख मिले हैं उनमें से कई शिलालेखों पर तो कनिष्क, हविष्क, और वासुदेव का नाम पाया जाता है। जिनका समय ई० सं० से पूर्व पचास वर्ष का है। और कई शिलालेख तो इनसे भी बहुत पुराने हैं। कङ्काली टीला की खुदाई के काम में अधिक सफलता डाक्टर फुहरर को मिली। क्योंकि आप लखनऊ के अजायबघर के अध्यक्ष थे और वहां का पुरातत्व सम्बन्धी शोध खोज का सब कार्य आपकी निगरानी में ही हुआ करता था । परन्तु ई० सं०. १८९८ में आपने सरकारी नौकरी छोड़ कर अपने देश को गमन किया और वहाँ जाकर आपने कङ्काली टीला की एक रिपोर्ट लिखी थी । उस रिपोर्ट से कतिपय पदार्थों का विवरण केवल नमूना के तौर पर यहाँ दर्ज कर देता हूँ। १-श्वेताम्बर जैनों की १० मूत्तिएँ हैं । उन पर शिलालेख भी अंकित हैं। जिनमें ४ शिलालेख तो ऐसे हैं कि जिनसे जैनों Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034865
Book TitleJain Mandiro ki Prachinta aur Mathura ka Kankali Tila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpamala
Publication Year1938
Total Pages34
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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