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तिसके ऊपर दो विद्या लिखी हुश्थी. एक सुवर्ण सिद्धी १ दूसरी परचक सैन्य निवारणी २ इन दोनो विद्यायोंके बांचे पीछे जब आगे बांचने लगे तब तिन विद्यायोंके अधिष्टाता देवताने श्री सि-इसेन को कहा कि आगे मत वांचो, तुमारे नाग्यमें ये दोही विद्यादै । तब श्री सिद्धसेन दिवाकरजीने स्तंन्नका मुख बंद करा. वो एक पुस्तक अपने पास रखा, पोडे तिस पुस्तककों नऊयन नगरीके श्री
आवतो. पार्श्वनाथजीके मंदिरमे गुप्तपणे कही रख दीया. पाळे वो पुस्तक श्री जिन:त्तसूरिजी महाराज जो विक्रम संवत् १२०४ मे थे तिनकों तिस मंदिरमेंसे मिला. अब वोदी पुस्तक जैसलमेरके श्री चिंतामणि पार्श्वनाथजीके मंदिरमे बसे यत्नसे रखा हुआहै, ऐसा हमने सुनाहै. और चित्रकुटका स्तंन्न नूमिमें गरक हो गया, यह कथन कितनेक पट्टावलि प्रमुख ग्रंथों में लिखा हुआहै. इस वास्ते श्री देवहिगणि कमाश्रमणसे पहिला नी कितनेक पुस्तक लिखे हुए मालुम होतेहै.
प्र. ७६-श्री महावीरजोके समयमें कि
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