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अनुयोगहारोंसें व्याख्या करीहै २ चनसरणमें चारसरणेका अधिकार है १, रोगीके प्रत्याख्यान की विधी २, अनशन करणेको विधी ३, बमे प्रत्पाख्यानके करणेका स्वरूप ४, गर्नादिका स्वरूप ५, चं बेध्यका स्वरूप ६, ज्योतिषका कथा न ७, मरणके समय समाधिकी रीतिका कथन ज, इंशेके स्वरूपका कथन ए, गबाचारमें गलका स्वरूप, १० और संस्थारपश्नमें संथारेकी महि. माका कथनहै, यह संदेपसे पैंतालीस आगममें जो कुछ कथन करा है, तिसका स्वरूप कहा, प रंतु यह नही समझ लेनाके जैन मतमें इतनेही शास्त्र प्रमाणिक है, अन्य नहीं; क्योंकि नमास्वा ति आचार्यके रचे हुए, ५०० प्रकरणहै, और श्री महावीर नगवंतका शिष्य श्री धर्मदास गणि क. माश्रमणजीकी रची हुश् नपदेशमाला तथा श्री हरिन सूरिजीके रचे १४४४ चौदहसौ चौवाली. स शास्त्र इत्यादि प्रमाणिक पूर्वधरादि आचार्योंके प्रकृति शतकादि हजारोही शास्त्र विद्यमान है, वे सर्व प्रमाणिक आगम तुल्य है, राजा शि
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