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ज्ञान उत्पन्न करेंगे.
प्र. ४५—क्या श्रीमहावीरजीकी सेवामें इंज्ञादि देवते रहते थे.
उ.-उद्ममस्गवस्त्रगमें तो एक सिझार्थनामा देवता इंश्को आज्ञासे मरणांत कष्ट पुर करने वास्ते सदा साथ रहता था; और इंद्रादि देवते किसि किसि अवसरमें वंदना करने सुखसाता पूरने वास्ते और नपसर्ग निवारण बास्ते आते थे और केवलज्ञान नत्पन्न हुआ पीतो सदाही देवते सेवामे हाजर रहतेथे.
प्र. ४६-श्रीमहावीरजीने दीक्षा लीया पीछे क्या नियम धारण कराया.
न.-यावत् उद्मस्व रहुं तावत् कोइ परीषह उपसर्ग मुझकों होवे ते सर्व दोनता रहित अन्य जनकी साहायसे रहित सहन करूं. जिस स्वगनमे रहनेसें तिस मकान वालेकों अप्रीति नत्पन होवे तो तहां नहीं रहेनां १ सदाही कार्योत्सर्ग अर्थात् सदा खमा होके दोनो बाहां शरी. रके अनलगती हु हैठकों लांबी करके पगोंमे
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