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दूसरी जातिवालेको नही समजते है यह प्रमचल है प्र. १७ - जैन धर्म नही पालता होय तिसके साथ तो खाने पीने श्रादिकका व्यवहार न करे परंतु जो जैन धर्म पालता होवे तिसके साथ नक्त व्यवहार होसके के नही.
न. - यह व्यवहार करना न करना तो बलिये लोकों के आधीन है. और हमारा अभिप्राय तो हम ऊपर के प्रश्नोत्तर में लिख आए है.
प्र. १८ - जैन धर्म पालने वालोंमें अलग अलग जाती देखने में आती है ये जैन शास्त्रानुसार हैं के अन्यथा है और ए जातियों किस वखतमे हूदै.
न. - जैन धर्म पालने वाली जातियों शाखानुसारे नही बनी है, परंतु किसी गाम, नगर पुरुष धंधे के अनुसारे प्रचलित हूइ मालम पमती है. श्रीमाल नसवालकातो संवत् नपर लिख श्राये और पोरवाम वंश श्रीहरिनसूरिजीने मे - वाम देशमें स्वापन करा और तिनका विक्रम संवत् स्वर्गवास होनेका ५८५ का ग्रंथो मे लिखा है
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