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एक गुरु चास (नीलचास) पदी
समान है. १ जैसें चाप पक्षीमें रूप है, पांच वर्म सुंदर होनेसें और शकुनमेंनी देखने लायक है १ परंतु नपदेश ( वचन) सुंदर नही है, २ कीमे आदिके खानेसे क्रिया (चाल) अछी नही है ३ तैसेही कि तनेक गुरु नामधारीयोमें रूप (वेष) तो सुविहित साधुका है १ परं अशुः (नत्सूत्र) प्ररूपनेसें नपदे श शुः नही, और क्रिया मूलोत्तर गुण रूप नही है, प्रमादस निरवद्याहारादि नही गवेषण करते है ३ यक्तं ॥ दगपाणंपुप्फफलंअणेसणिऊं गिहबकि चाईअजयापमिसेवंतिजश्वेसविमंबगानरं ॥१॥ इत्यादि । अस्यार्थः ॥ सञ्चित्त पाणी, फूल, फल, अनेषणीय आहार गृहस्थके कर्त्तव्य जिवहिंसा १ असत्य र चोरी ३ मैथुन ४ परिग्रह ५ रात्रिनोज न स्नानादि असंयमी प्रति सेवतेहै, वेनी गृहस्थ तुल्यहो है, परंतु यतिके वेषकी विटंबना करनेसें इस वातसे अधिक है, ऐसे तो संप्रति कालमे खम आरेके प्रनावसें बहूत है, परंतु तिनके
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