________________
गुणी ऐसें प्रमाणांगुलसें पृथ्वी आदिकका मापा करना, अब चूर्मिकार कहता है कि ये दोनों मत हजार गुणो अंगुल और चारसौ गुणी अंगुलके मापेसें पृथ्वी आदिकके मापनेके मत, सूत्र न. णित नही (सिशंत सम्मत नही) है, और अंगुल सत्तरी प्रकरणके कर्ता श्री मुनिचंद सूरिजी (जो के विक्रम संवत् ११६१ मे विद्यमान थे) श्न पूवोक्त दोनो मतोंकों दषण देतेहै तथाच तत्पाठः॥ किंचमयेसुदोसुविमगहंगकलिंगमा आसव्वेपायेणारियदेसाएगंमियजोयणेहुंति ॥ १६॥ गाथा ॥ इसकी व्याख्या ॥ जेकर ऐसें मानीयेके एक प्र. माण अंगुलमें एक सहस्त्र नत्सेधांगुल अथवा चा रसौ नत्सेधांगुल मावे, ऐसे योजनोंसे पृथ्वी आ दिक मापीए, तबतो प्रायें मगधदेश, अंगदेश, कलिंगदेशादि सर्व आर्य देश एकही योजनमें मा जावेंगे, इस वास्ते दशगुणें नत्सेधांगुलके विकंनंपणेसें मापना सत्य है, इस चर्चासें अधिक पांचसौ धनुषकी आवगाहना वाले लोक इस गे टेसें प्रमाणवासी नगरीमें क्योंकर मावेंगे, और
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com