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नाम श्वेतांबरोंके कल्पसूत्र के साथ मिलते है, वा तुमारेनी किसी पुस्तकके साथ मिलते है, मेरी समझमें तो तुमारे किसी पुस्तकमें ऐसे गण, कुल, शाखाके नाम नहीं है, जे मथुरांके शिला लेखोंके साथ मिलते आवे इससे यह निसंदेह सिह होता है, कि मथुरांके शिला लेखोंमें सर्व गण, कुल शाखा, आचार्योंके नाम श्वेतांबरोंके है, तो फेर तुमारे देवनसेनाचार्यनें जो दर्शन सार ग्रंथमें यह गाथा लिखोहैकि बत्तीस बाससए, विक्कम निवस्स, मरण पत्तस्त, सोरठे वल्लहीए, सेवा संघस मुपनो ॥१॥ __अर्थ. विक्रमादित्य राजाके मरां एकसौ न तीस १३६ वर्ष पीने सोरठ देशकी वल्लनी नग. रीमें श्वेतपट (श्वेतांबर संघ नत्पन्न हुआ) यह कहनां क्योंकर सत्य होवेगा, इस वास्ते इन शिला लेखोंसे तुमारा मत पीसें निकला सि होता हे, इस वास्ते श्री विरात् ६० वर्ष पी दिगंबर मतोत्पत्ति, इस वाक्यसें श्वेतांबरोका कथन सत्य मालुम होता है, और अधुनक मतवाले लुंपक,
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