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१११ अथवा आचार्यका श्लकाब मिलताहै, जो बुष्टि नाणकके साथ मिलताहै और सो इलकाब (पद वीका नाम) बहुत प्रसिह रीतीसें जैनके जो यति लोक साधु धर्म संबंधी पुस्तकों श्रावक साधुयों को समझने लायक गिणनेमे आतेथे तिनको दे. नेम आतेथे, परंतु जो साधु गणि (आचार्य) एक गलका मुखीया कहने में आताया, तिसका यह नारो श्लकाब था, और हाल मेंनी पिबलीरीती प्रमाणे बमे साधु मुख्य आचार्यकों देनेमें आता है. शाला (गणो) मेसें कोटिक गणके बहुत फांटे है, और तिसके पेटे नाग होके दो कुल, दो सा खायों और एक नत्ति हुआहै, इस वास्ते तिसका बमा लंबा इतिहास होना चाहिये, और यह क हना अधिक नही होवेगा, क्योंकि लेखोंके पुरावे ऊपरसें तिसकी स्थापना अपणे ईसवी सनको शूरुआतसे पहिले प्रोमेसें थोमा काल एक सैंकमा (सो वर्ष) में हूश्यी, वाचक और गणि सरी पेश्लकाबोंकी तथा ईसवी सन पहिले सैकेके अं तमें असलकी शालाकी हयाती बतलाबेदके तिस
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