________________
चिंतन करे तो तीर्थकर नाम कर्म बांधे दर्शन सम्यक्त ए विनय ज्ञानादि विषये १० इन दोनोकों निरतिचार पालेतो तीर्थकर नाम कर्म बांधे. जो जो संयमके अवश्य करने योग्य व्यापारहै तिसको आवश्यक कहतेहै तिसमें अतिचार न लगावे तो तीर्थकर नाम कर्म बांधे ११ मूल गुण पांच महाव्रतमें और उत्तर गुण पिंम विशुद्ध्यादिक ये दोनो निरतिचार पाले तो तीर्थकर नाम कर्म बांधे १२ कण लव मूहुर्तादि कालमें संवेग ना. वना शुन्न ध्यान करनेसे तीर्थंकर नाम कर्म बांधताहै १३ उपवासादि तप करनेसे यति साधु जनको उचित दान देनेसे तीर्थकर नाम कर्म बांधताह १५ दश प्रकारकी वैयावृत्य करनेसे ती १५ गुरुवादिकांकों तिनके कार्य करणेसे गुरु आदिकोंके चित्त स्वास्त रूप समाधि नपजावनेसें ती० १६ अपूर्व अर्थात् नवा नवा ज्ञान पढनेसें ती १७ श्रुत नक्ति प्रवचन विषये प्रत्नावना करनेसे ती० १८ शास्त्रका बहुमान करनेसें ती १९ यथाशक्ति अर्हदुपदिष्ट मार्गकी देशनादि क
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com