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१५३ अल्प थी तिनोने अपने मतके पुस्तक जलदीसें लिख लीने, और जिनोकी महा प्रौढ धारणा क रनेको शक्तिवाली बुझ्थिी तिनोंने पीसें लिखे. यह अनुमानसें सिह है, और दिगंबर मतमें श्री महावीरके गणधरादि शिष्योंसें लेके ५८५ वर्ष तकके काल लग हुए हजारों आचार्योमेसें किसी आचार्यका रचा हुआ को पुस्तक वा किसी पु स्तकका स्थल नही है, इस वास्ते दिगंबर मत पीसें नत्पन्न हुआ है.
प्र.१५६-देवगिणिक्षमाश्रमणनें जो ज्ञान पुस्तकोंमे लिखाहै, सो आचार्योंकी अविविन्न परं परायसें चला आया सो लिखा है, परं स्वकपोल कल्पित नही लिखा, इसमें क्या प्रमाण है, जि ससे जैनमतका ज्ञान सत्य माना जावे.
उ.-जनरल कनिंगहाम साहिब तथा मातर हाँरनल तथा माक्तर बूलर प्रमुखोंने मथुरा नगरीमेंसे पुरानी श्री महावीरस्वामिकी प्रतिमा की पलांडी ऊपरसें तथा कितनेक पुराने स्तनों ऊपरसें जो जूने जैनमत. सबंधी लेख अपनी स्वच
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