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२२ जीसें लेके श्री देवगिणितमाश्रण तक कंठाग्र रहै क्योंकर माने जावे, और श्वेतांबर मतं मूल का है और दिगंबर मत पीसें निकला, इस क पनमें क्या प्रमाण है.
न.-जैन मतके आचार्य सर्व मतोंके आचार्योंसें अधिक बुद्धिमान थे, और दिगंबराचार्यों से श्वेतांबर मतके आचार्य अधिक बुध्मिान आ त्मज्ञानी थे, अर्थात् बहुत कालतक कंगन ज्ञान रखने में शक्तिमान थे, क्योंकि दिगंबर मतके तोन पुस्तक धवल ७०००० श्लोक प्रमाण १ जयधवल ६०००० श्लोक प्रमाण महाधवल ४०००० श्लोक प्रमाण ३ श्री वीरात् ६८३ वर्षे ज्यैष्ठशुदि ५ के दिन नूतवलि १ पुष्पदंतनामें दो साधुयोंने लिखे थे, और श्वेतांबर मतके पुस्तक गिणतीमें और स्वरूपमें अलग अलग एक कोटि १००00000 पांचसौ आचार्योने मिलके और हजारों सामान्य साधुयोंने श्री विरात् एG० वर्षे वल्लनी नगरीमें लिखे थे, और बौक्ष्मतके पुस्तकतो श्री वीरात् थोमेसें वर्षों पीव्ही लिखे गयेथे, जिनोकी बुद्धि
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