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मनुष्य, देव ए चार जगें जब जीव गति नाम कर्मके नदयसे बक बांकी गति करे, तब तिस जी वकों बांके जातेको जो अपने स्थानमें ले जावे, जैसे बैलके नाकमें नाथ तैसे जीवके अंतराल वक्र गतिमें अनुपूर्वीका नदय तथा जो जीवके हाथ पगादि सर्व अवयव यथायोग्य स्थानमें स्थापन करे, सो अनुपूर्वी नामकर्म. सो चार प्रकारका है, नरकानुपूर्वी १ तिर्यंचानुपूर्वी २ मनुष्यानुपूर्वी ३ देवतानुपूर्वी ४ एवं सर्व ६३ हूर, जिसके नदय से हाथी वृषन्नकी तरे शुन्न चलनेकी गति होवे, सो शुन्न विहाय गति ६४ जिस कर्भके नदयसें ऊंटको तरे बुरी चाल गति होवे, सो अशुन्न वि हाय गति नामकर्म ६५ जिसके नदयसे परकी शाक्ति नष्ट हो जावे, परसें गंज्या परान्नव करा न जाय, सो पराघात नामकर्म ६६ जिसके नद यसें सासोस्वासके लेनेकी शक्ति उत्पन्न होवे, सो नत्स्वास नामकर्म ६७ जिसके नदयसें जीवांका शरीर नष्ण प्रकाश वाला होवे, सूर्य मंगलवत्, सो आतप नामकर्म ६८ जिसके नदयसे
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