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१७ होवे जिस कर्मके नदयसे सो अाई नराच संहनन नाम कर्म ३१ जैसे खीलीसें दो काष्ट जोमे होवे तैसें हामकी संधी जिस कर्मके नदयसे होवे, सो कीलिका संहनन नामकर्म ३२ दोनो हामोंके हमे मिले हुए होवे जिस कर्मसे सो सेवा” संहनन नामकर्म ३३ जिस कर्मके नदयसे सामुद्रिक शा स्त्रोक्त संपूर्ण लक्षण जिसके शरीरमें होवे तथा चारो अंस बराबर होवे, पलाठी मारके बेटे तब दोनों जानुका अंतर और दाहिने जानुसें वामास्कंध और वामेजानुसे दाहिनास्कंध और पलारी पीठसे मस्तक मापता चारों मोरी बराबर होवे,
और बत्तीस लक्षण संयुक्त होवे, ऐसा रूप जिस कर्मके नदयसे होवे तिसका नाम सम चतुरस्त्र संस्थान नामकर्म ३४ जैसे वह वृक्षका ऊपल्या नाग पूर्ण होवेहै, तैसेही जो नानोसें ऊपर संपू. पण लक्षणवाला शरीर होवे और नानीसें नीचे लक्षण हीन होवे, जिस कर्मके नदयसे सो निग्रोध परिमंमल संस्थान नामकर्म ३५ जिसका शरीर नान्नीसें नीचे लक्षणयुक्त होवे, और नानी
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