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ले जीव नत्पन्न होतेहै, सो एकेंश्यि जातिनाम कर्म १ जिसके नुदयसे दोइंद्रियवाले कृम्यादिपणे नत्पन्न होवे, सो वीडिय जातिनाम कर्म २ एवं तीनेंशि कीमीआदि, चतुरिंडिय भ्रमरादि, पंचेंयि नरक पंचेंद्रिय पशु गोमहिष्यादि मनुष्य दे. वतापणे नत्पन्न होवे, सो पंचेंश्यि जातिनाम कर्म. एवं सर्व ए नदारिक शरीर अर्थात् एकेंद्रिय, ही श्यि, त्रींद्रिय, चतुरिंघिय, पंचेंश्यि, तिर्यंच मनु. ध्यके शरीर पावनेको तथा छदारीक शरीरपणे परिणामकी शक्ति, तिसका नाम ऊदारिक शरीर नाम कर्म १० जिसकी शक्तिसे नारकी देवताका शरीर पावे, जिससे मन इलित रूप बणावे तथा वैक्रिय शरीरपणे पुजल परिणामनेकी शक्ति सौ वैक्रिय शरीरनाम कर्म ११ एवं आहारिक लग्धी वालेके शरीरपणे परिणामावे १५ तेजस शरीर अंदर शरीरमें नुश्नता, आहार पचावनेकी शक्तिरूप, सो तैजस नाम कर्म १३ जिसकी शक्तिसें कर्मवर्गणाकों अपने अपने कर्म प्रकृतिके परिणामपणे परिणामावे सो कार्मण शरीर नाम कर्म
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