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में वर्ते, सुसंबोध्य होवे, देव गुरुका पूजक, पूजाप्रिय कापोत लेश्याके परिणामवाला मनुष्य तिर्यचादि मनुष्यायु बांधे ३ अथ देव आयु अविरति सम्यगदृष्टि मनुष्य तीर्यच देवताका आयु बांधे, सुमित्रके संयोगसे धर्मकी रुचिवाला देशविरति सरागसंयम देवायु बांधे, बालतप अर्थात् दुःखगर्नित, मोहगनित वैराग्य करके दुष्कर कष्ट पंचाग्नि साधन रस परित्यागसें, अनेक प्रकारका अज्ञान तप करनेसे निदान सहित अत्यंत रोष तथा अहंकारसे तप करे, असुरादि देवताका आयु बांधे तथा अकाम निर्जरा अजाणपणे नूख, तृषा, शीत, नभ रोगादि कष्ट सहनेसे स्त्री अन मिलते शोल पाले, विषयकी प्राप्तिके अन्नावसे विषय न सेवनेसे इत्यादि अकाम निर्जरासें तथा बाल मरण अर्थात् जलमें मूब मरे, अग्निसे जल मरे, ऊपापातसे मरे, शुन्न परिणाम किंचितवाला तो व्यंतर देवताका आयु बांधे, प्राचार्यादिककी अ. वज्ञा करे तो, किल्विष देवताका आयु बांधे, तथा मिथ्यादृष्टीके गुणांको प्रशंसा करे, महिमा बढा
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