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१६४ नदयसे पुरुषके साथ विषय सेवनेकी श्छा नुत्पन्न होवे, सो स्त्री वेद मोहनीय २५ जिसके नदयसें स्त्री पुरुष दोनोंके साथ विषय सेवनेकी अनिला षा नत्पन्न होवे, सो नपुंसकवेद मोहनीय, २५ जिसके नदयसे शुइ देव गुरु, धर्मकी श्रज्ञ न होवे तो मिथ्यात्व मोहनीय २६ जिसके नुदयसें शुइ देव गुरु धर्म अर्थात् जैनमतके ऊपर रागनी न होवे, और द्वेषनी न होवे, अन्य मतकीनी श्रा न होवे सो मिश्र मोहनीय श जिसके नदयसे शुः देव गुरु धर्मको श्रहातो होवे परंतु सम्यक्तमें अतिचार लगावे सो सम्यक्त मोहनीय २० इन २७ प्रतियोंमें आदिकी २५ पच्चीस प्र. कतिको चारित्र मोहनीय कहतेहै, और ऊपलो तीन प्रतियोंकों दर्शनमोहनीय कहते है एवं श्व प्रकृति रूप मोहनीय कर्म चौया है, अथ मोहनीय कर्मके बंध होनेके हेतु लिखते है. प्रथम मिथ्या त्व मोहनीयके बंध हेतु नन्मार्ग अर्थात् जे संसा रके हेतु हिंसादिक आश्रव पापकर्म, तिनको मोद हेतु कहे तथा एकांत नयसें नि:केवल क्रिया क
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