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१५७ नपाध्यायकी अविनय मत्सर करे, अकालमे स्वा. ध्याय करे, योगोपधान रहित शास्त्र पढे, अस्वाध्यायमें स्वाध्याय करे, ज्ञानके नपकरण पास हयां दिसा मात्रा करे, ज्ञानोपकरणको पग लगावे, ज्ञानोपकरण सहित मैथुन करे, ज्ञानोपकरणकों थूक लगावे. ज्ञानके व्यका नाश करे, नाश क रतेको मना करे, इन कामोंसें ज्ञानावरणीय पंच प्रकारका कर्म बांधे; तिसके नदय क्षयोपशमसे नाना प्रकारकी बुद्धिवाले जीव होते महाव्रत सं. यम तपसे ज्ञानावरणीय कर्म कय करे, तब केवलज्ञानी सर्व वस्तुका जानने वाला होवे, इति प्रथम ज्ञानावरणी कर्मका संदेप मात्र स्वरूप.१
अथ दूसरा दर्शनावरणीय कर्म तिसके नव ए नेदहै. चकुदर्शनावरण १ अचकुदर्शनावरण २ अवधिदर्शनावरण ३ केवलदर्शनावरण निज्ञ ५ निशानिश ६ प्रचला ७ प्रचला प्रचला स्त्यान
झे ए. अब इनका स्वरूप लिखतेहै. सामान्य रूप करके अर्थात् विशेष रहित वस्तुके जाननेकी जो आत्माकी शक्तिहै तिसकों दर्शन कहते है, तिनमें
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