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अमावसें इस वास्ते इनका स्वरूप नंदी आदि सिद्धांतोसें जानना. ये पांच भेद ज्ञानावरण कर्म केहै. यह ज्ञानावरणकर्म जिन कर्त्तव्योंसें बांधता है, अर्थात् उत्पन्न करके अपने पांचों ज्ञान शक्तियांका आवरण कर्त्ता है सो येह है, मति, श्रुत प्र मुख पांच ज्ञानकी १ तथा ज्ञानवंतकी २ तथा ज्ञानोपकरण पुस्तकादिकी ३ प्रत्यनीकता अर्था तू निष्टपणा प्रतिकुलपणा करे, जैसें ज्ञान और ज्ञानवंतका बुरा होवे तैसें करे १; जिस पासों पढा होवे तिस गुरुका नाम न बतावे, तथा जानी हूइ वस्तुकों प्रजानी कहे २; ज्ञानवंत तथा ज्ञानोपकरणका अग्निशस्त्रादिकसें नास करे ३; तथा ज्ञानवंत ऊपर तथा ज्ञानोपकरण ऊपर प्रदेष अं तरंग अरुची मत्सर ईर्ष्या करे ; पढने वालों को अन्न वस्त्र वस्ती देनेका निषेध करें, पढनेवालों को अन्य काममें लगावे, बातों में लगावे, पठन विवेद करे ए; ज्ञानवंतकी प्रति अवज्ञा करे, यह हीन जाति वाला है, इत्यादि मर्म प्रगट करनेके वचन
बोले, कलंक देवे, प्राणांत कष्ट देवे, तथा आचार्य
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