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तिन नपर अल्प सत्ववाले जिव बहुत नही चल सक्तेहै. गृहस्थका धर्म और साधुका धर्म बहुत नियमोसे नियंत्रितहै, और जैनमतका तत्व तो बहुत जैन लोकनी नहीं जान सक्तेहै, तो अन्यमतवालोंको तो बहुतही समझना कठिनहै, बौः मतके गोविंदाचार्य- नरूचमें जैनाचार्यसे चरचामे हार खाइ, पी जैनके तत्व जानने वास्ते कपटसें जैनकी दोहा लीनी. कितनेक जैनमतके शास्त्र पढके फेर बौध वन गया, फेर जैनाचार्यों के साथ जैनमतके खेमन करनेमें कमर बांधके चरचा करी, फेरनी हारा, फेर जैनकी दीक्षा लीनी, फेर हारा, इसोतरें कितनी वार जैनशास्त्र पमे; परंतु तिनका तत्व न पाया, पिग्ली विरीया तत्व पाया तो फेर बौध नही हुआ. जैनमत स. मझनां और पालनां दोनो तरेसे कठिन है, इस वास्ते बहुत नही फैला है; किसी कालमे बहुत फैलानी होवेगा, क्या निषेध है, इसीतरे मीमांसाका वार्तिककार कुमारिल नट्टने और किरणा वलिक कर्त्ता नदयननेन्नी कपटसें जैन दीका
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