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मंदिर न बना सकें, और जिन मार्गके नक्त होवे, तिस जगे आवश्य जिन मंदिर करानां चाहिये, और श्रावकका पुत्र धनहीन होवे तिसकों किसी का रुजगार में लगाके तिसके कुटंबका पोषण होवे ऐसे करे, तथा जिस काम में सीदाता होवे तिसमें मदत करे. यह साहम्मिवबलहै, परंतु यह न समऊनांके हम किसी जगे जिन मंदिर बना नेकों और बनिये लोकोंकें जिमावने रुप साहम्मिल्लका निषेध करते है, परंतु नामदारीके वास्ते जिन मंदिर बनवाने में अल्प फल कहते है, और इस गामके बनोयोने उस गामके बनियोंकों जिमाया और उस गामवालोंने इस गाम के बनियोंकों जिमाया, परंतु साहम्मिकों साहाय्य करनेकी बुद्धिसें नही, तिसकों हम साहमिवबल नही मानते है, किंतु गधें खुरकनी मानते है.
प्र. १५२ - जैनमततो तुमारे कहनेसें दमको बहुत उत्तम मालुम होता है, तो फेर यह मत बहुत क्यों नही फैला है ?
न. - जैनमतके कायदे ऐसे कठिन है कि
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