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११५ वाला होता है, यह लब्धि साधुकोही होतीहै.
खेलोसहि ली ३--जिस साधुका श्लेष्म बूंकही नषधिरूप है, जिस रोगीके शरीरकों लग जावेतो तत्काल सर्व रोग नष्ट हो जावे, यह सुगंधित होताहै, यह लब्धि साधुकों होती है, इ. सको श्लेष्मोषधि लब्धि कहतेहै.
जल्लोसहि सही --जिस साधुके शरीरका पसीना तथा मैलन्नी रोग दूर कर सके, तिसकों जल्लोषधि लब्धि कहते है, यहन्नी साधुकोंही होती है.
सधोसहि लड़ी ५ जिस साधुके मलमूत्र केश रोम नखादिक सर्वोषधि रूप हो जाबे, सर्व रोग दूर कर सकें, तिसकों सर्वोषधि लब्धि कह तेहै, यह साधुको होतोहै. ___संनिन्नासोए लही ६-जो सर्व इंडियोंसे सुणे, देखे, गंध सूंघे, स्वाद लेवे, स्पर्श जाणे ए कैक इंस्थिसे सर्व इंश्यांकी विषय जाणे अथवा बारा योजन प्रमाण चक्रवर्तिकी सेनाका पमाव होताहै, तिसमे एक साथ वाजते हुए सर्व वजं
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