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जैन-धर्म
[ १५ ] मार काट कर गले उतारता हुआ आज इस बात को निर्लजता के साथ कहने का साहस करने लगा है कि पशु पक्षी आदि सब प्राणी ईश्वर ने हमारे खाने पीने और.मौज उड़ाने के लिये ही बनाए हैं। जैसे उनके जान ही नहीं !
दुनियाँ क्या चाहती है ? यदि इस प्रश्न पर गंभीरता के साथ विचार किया जाय तो इन सब दुर्वासनाओं, कुविचारों और काले कारनामों के अन्दर केवल एक ही उद्देश्य कार्य करता हुआ दिखाई देता हैवह उद्देश्य है 'सुख की प्राप्ति' । मनुष्य चाहता है कि चाहे पुण्य के स्थान पर पाप और धर्म की जगह अधर्म या कुछ और ही क्यों न करना पड़े, किन्तु आनन्द मिलना चाहिये । दुःख है कि ज्यों २ मनुष्य पापादि पतित कार्यों की ओर बढ़ता जाता है त्यों २ - उसे सुख और शांति के स्थान पर अशांति, व्याकुलता, व संकटों का ही सामना करना पड़ रहा है। यही कारण है जो दुनियां में पहिले से आज कहीं ज्यादा दुःखों की काली और निराशा पूण घनघोर घटाएँ छाई हुई हैं । राज-प्रासाद से लेकर दीन दुखियों के झोपड़ों तक एक अजीब बेचैनी अनुभव की जा रही है। यद्यपि भौतिक विज्ञान की चमत्कार पूर्ण खोजें मनुष्य के लिए भोगोपभोग की सामग्रियों में यथेष्ट वृद्धि और जीवन में सुविधाओं की नित नई सृष्टि करती चली जा रही हैं किन्तु सुविधाओं
के बढ़ जाने पर भी सुख नहीं बढ़ा, सामग्रियों की वृद्धि हो जाने Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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