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________________ २०४ ] दुसरा माग । सर्व मोह क्षय होजायगा तथा जिसको ध्यानका उसम पद न प्राप्त होगा व क्रमसे निर्वाणको प्रावेगा । i समयसार में कहा है वदणियमाणिवांता सोळाणि तथा तवं च कुष्वंता । परमट्टबाहिरा जेण तेण ते होति बण्णाणी ॥ १६० ॥ भावार्थ- व्रत व नियमोंको पालते हुए तथा शील और तपको हुए भी जो परमाथ जो तत्वसाक्षात्कार है उससे रहित है वह • आत्मज्ञान रहित अज्ञानी ही है। पंचास्तिकाय में कहा है बस्स हिदणुपत्तं वा परदन्यमिह विज्जदे रागो । सोण विजानदि समयं सगस्स सम्प्रागमवरोवि ॥ १६७ ॥ तझा णिच्कुदिकामो निस्संगो जिम्ममो व हविय पुणो । सिद्धसु कुणदि मति णिव्वाण तेण पप्पादि ॥ १६९ ॥ L करते भावार्थ - जिसके मन में परमाणु मात्र भी राग निर्वाण स्वरूप -मात्माको छोड़कर परद्रव्यमें है वह सर्व आगमको जानता हुआ भी अपने शुद्ध स्वरूपको नहीं जानता है । इसलिये सर्व प्रकारकी इच्छाओंसे विरक्त होकर, ममता रक्षित होकर तथा परिग्रह रहित " होकर किसी परकोन ग्रहण करके जो सिद्ध स्वभाव स्वरूपमें भक्ति करता है, मैं निर्वाण स्वरूप हूं ऐसा ध्याता है, वही निर्वाणको पाता है । मोक्षपाहुड़में कहा है सवे कसाय मुत्तं गारत्र मयरायदो सव. मोहं । लोयवहार विग्दो अप्पा झाए झणत्यो || २७ ॥ भावाथ - मोक्षका भर्थी सर्व क्रोधादि कषायोंको छोड़कर, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034856
Book TitleJain Bauddh Tattvagyan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad Bramhachari
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1940
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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