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जौन वैद तत्वज्ञान। [१५५ गृहिणी और काली दासीका दृष्टांत दिया है। वह गृहिणी ऊपरसें शांत थी, भीतरसे क्रोधयुक्त थी। जो दासी विनयी व स्वामिनीकी माज्ञानुसार सममाव करनेवाली थी वह यदि कुछ देरसे उठी हो तो स्वामिनीको शांत भावसे कारण पूछना चाहिये। यदि वह कारण पछती क्रोध न करती तो उसकी बातसे उसको संतोष होजाता । वह कह देती कि शरीर अस्वस्थ होनेसे देरसे उठी हूं। इस दृष्टांतको देकर भिक्षुषोंको उपदेश दिया गया है कि स्वार्थसिद्धि के लिये ही शांत भाव न रक्खो किन्तु धर्मलाभके लिये शांतमाव रक्खो। क्रोधभाव वैरी है ऐसा जानकर कभी क्रोध न करो तथा साधुको कष्ट पड़ने पर भी, इच्छित वस्तु न मिलने पर भी मृदुभाषी कोमक परिणामी रहना चाहिये।
(५) उत्तम क्षमा या माव अहिंसा या विश्वप्रेम रखनेकी कड़ी शिक्षा साधुओंको दी गई है कि उनको किसी भी कारण मिलने पर. दुर्वचन सुनने पर या शरीरके टुकड़े किये जाने पर भी मनमें विकारमाव न लाना चाहिये, द्वेष नहीं करना चाहिये, उपसर्गकर्तापर भी मैत्रीभाव रखना चाहिये।
पांच तरहसे प्रवचन कहा जाता है-(१) समयानुसार कहना, (२) सत्य कहना, (३) प्रेमयुक्त कहना, (४) सार्थक काना, (५) मैत्रीपूर्ण चित्तसे कहना । पांच तरहसे दुर्वचन कहा जाता है-(१) विना अवसर कहना, (२) असत्य कहना, (३) कठोर वचन कहना, (४) निरर्थक कहना, (५)द्वेषपूर्ण चित्तसे कहना । साधुका कर्तव्य है किचाहे कोई मुक्चन कहे या कोई दुर्वचन कहे दोनों दखामोंमें सम
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